कन्याकुमारी
मैं कन्याकुमारी आज से चार- पाँच साल पहले भी आई थी, पर इस बार की ट्रिप कुछ अधिक रुचिकर रही! मेरे पति और मैं, कन्याकुमारी एक्सप्रैस से दोपहर करीब साढे़ बारह बजे, कन्याकुमारी के चकाचक साफ सुथरे प्लैटफॉर्म पर खड़े थे - ना कहीं कोई कूड़े का ढेर, ना किसी प्रकार की गंदगी। टैक्सी में अपने भारी भरकम सूटकेस लादकर, हम रेल्वे विश्रामगृह पहुँचे । परंपरागत शैली में तैयार की गई यह इमारत बहुत ही ख़ूबसूरत लगी! जलपान करने के पश्चात हम निकल पड़े, ववातुरैई के विश्वविख्यात विवेकानन्द रॉक मेमोरियल के लिये।वहाँ तक पहुँचने के लिये, हमें मोटरबोट द्वारा जाना था। टिकट ले कर बोट पर जाने की पंक्ति थी तो बहुत बड़ी, पर बहुत फुर्ती से रेंग रही थी! कुछ ही क्षणों में हम लपक कर बोट में चढ़ गए और अपनी अपनी सीट पर, मय लाइफ़जैकेट के, विराजमान हो गए।बड़ों और बच्चों की चिल्लपौं के बीच, हमारी नाव फर्राटे से आगे बढ़ी और कुछ ही मिनटों में, सब अति उत्साहित से नाव से उतरने लगे।हम दोनों भी अपनी लंबाई का फायदा उठाते हुए, फटाफट नीचे उतर गए, और टिकट ले कर, जूते हटा कर आगे बढ़े। पर्यटकों के सुचारू रूप से घूमने के लिए, उत्तम व्य